Jhitku aur mitki
Jhitku aur mitki


CGFilm.in | अभी तक प्यार में केवल शीरीं-फरहाद, लैला-मजनू, हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट और सोहनी-महिवाल के किस्सों की दुहाई दी जाती है। मगर छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर के सुदूर आदिवासी अंचल के युवा भी एक ऐसे प्रेमी युगल को अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने प्रेम के लिए अपनी जान दे दी। जी हां, आदिवासियों का आदर्श प्रेमी युगल ‘झिटकू-मिटकी हैं, जिन्होंने अपने सच्चे प्रेम की खातिर कई सालों पहले जान दे दी थी।

जानिये कहानी क्या है
इसके बाद से आज यहां के लोग इस जोड़ी को देवी-देवताओं की तरह पूजने में लगे हुए हैं। आदिवासी अंचलों में प्यार के लिए प्राण न्योछावर करने की उदात्त परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसका उदाहरण ‘झिटकू-मिटकी की पूजा से मिलता है। झिटकू और मिटकी की यह पुरानी अमर प्रेमगाथा बस्तर जिले के विकासखंड विश्रामपुरी के पेंड्रावन गांव की है। इसके अनुसार गोंड आदिवासी का एक किसान पेंड्रावन में निवास करता था। उसके सात लड़के और मिटकी नाम की एक लड़की थी। सात भाइयों में अकेली बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत प्यारी और दुलारी थी। मिटकी के भाई इस बात से सदैव चिंतित रहते थे कि उनकी प्यारी बहन जब अपने पति के घर चली जाएगी तो वे उसके बिना नहीं रह पाएंगे, इस कारण भाइयों ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो शादी के बाद भी उनके घर पर रह सके। वर के रूप में उन्हें झिटकू मिला, जो भाइयों के साथ काम में हाथ बंटाकर उसी घर में रहने को तैयार हो गया।

वियोग में बहन ने दी जान
गांव के समीप एक नाला बहता था, जहां सातों भाई और झिटकू पानी की धारा को रोकने के लिए छोटा-सा बांध बनाने के प्रयास में लगे थे। दिन में वे लोग बांध बनाते थे और शाम को घर चले जाते थे, लेकिन हर रात पानी बांध की मिट्टी को तोड़ देता और उनका प्रयास व्यर्थ हो जाता था। एक रात एक भाई ने स्वप्न में देखा कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए देवी बलि मांग रही है। अंधविश्वास के आधार पर उन्होंने इस बात के लिए हामी भर ली और बलि के लिए झिटकू का चयन कर लिया। एक रात उन्होंने उसी बांध के पास झिटकू की हत्या कर दी। बहन को जब मालूम हुआ तो उसने भी झिटकू के वियोग में बांध के पानी में कूदकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। इस बलिदान की कहानी जंगल में आग की तरह सभी गांवों में फैल गई।

यहां होती है मन्नत पूरी
इस प्यार और बलिदान से प्रभावित होकर ग्रामीण आदिवासी झिटकू और मिटकी की पूजा करने लगे। आज ये आदिवासी प्रेम की सफलता के लिए झिटकू-मिटकी की पूजा को सही मानते हैं। उनका कहना है कि यहां पूजा करने के बाद कोई भी प्रेमी-प्रेमिका का सपना अधूरा नहीं रहता है। सदियों बाद आज के आधुनिक युग में झिटकू-मिटकी की ख्याति बस्तर के सुदूर गांवों से देश की राजधानी तक भी फैल चुकी है। इस अमर कहानी को पर्दे पर लाने की तैयारी छत्तीसगढ़ के युवा निर्देशक राजा खान कर रहे हैं। विधिवत शुरूआत 1 जून से बस्तर की हसीन वादियों में की जाएगी। फिल्म के निर्माता- शेष कुमार मरकाम, हुकुम मरकाम, राजू कोर्राम, हैं। फि़ल्म लेखन निर्देशन राजा खान का है। जिसमें एक्टर लाल जी कोर्राम, ऐक्ट्रेस- लवली अहमद होगी अहम किरदार में संजय जैन कांकेर नजर आएंगे।