छत्तीसगढ़ी फिल्म डायरेक्टर संतोष जैन
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के मॉल में प्रदर्शन से बढ़ गई हमारी जवाबदारी : संतोष जैन छत्तीसगढ़ी फिल्म डायरेक्टर
सीजीफिल्म.इन से खास बातचीत में संतोष जैन ने रखी अपनी बातें
वैसे तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों की बात करें तो अब तक लगभग 3 सौ से ज्यादा छत्तीसगढ़ी फिल्में बड़े परदे पर आ चुकी है। इसमें भी सैकड़ों फिल्मों ने अपनी लागत के बराबर कमाई की है, तो कई फिल्मों ने जबरदस्त सफलता दिलाते हुए रिकॉड भी तोड़ दिया है। इसमें सबसे पहले नाम आता है मोर छईया भुईयां का। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के साथ ही आई इस फिल्म ने क्षेत्रीय फिल्मों का कारोबार बढ़ाने और स्थानीय जनता की भागीदारी इसमें तय की है। और हाल ही में आई फिल्म हंस झन पगली फंस जबे…भी जबरदस्त सफलता के साथ छत्तीसगढ़़ी फिल्मों के कारोबार में नई ऊंचाईयां छू रही है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के कारोबार और उनकी सफलता को लेकर सीजीफिल्म.कॉम ने जाने-माने निर्देशक और निर्माता संतोष जैन से बातचीत की तो यह बात निकलकर सामने आई कि यदि छत्तीसगढ़ फिल्मों को ज्यादा से ज्यादा थियेतर उपलपब्ध करा दिए जाएं तो निश्चित ही ये फिल्में बॉलीवुड फिल्मों के ज्यादा तो नहीं लेकिन कमतर भी साबित नहीं हो पाएगी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि निर्माता-निर्देश संतोष जैन की फिल्म मिस्तर चंदनिया जल्द ही बढ़े परदे पर धूम मचाने तैयार है।
पेश है संतोष जैन से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
आपकी अपकमिंग फिल्म मि. चंदनिया में ऐसा क्या है, जो लोगों को देखने को मिलेगा?
CG Film Mr. Chandaniya Video
मि. चंदनिया आम फिल्मों से अलग है। ये फिल्म फिल्मों में काम करने वाले यानी लोक मंच पर काम करने वालों को लेकर बनाई गई है। इस फिल्म में लोक मंच के कलाकारों की जरूरतों और समस्याओं को दिखाया गया है। ये सब इस फिल्म में देखने को मिलेगा। इस फिल्म में के हीरो आकाश सोनी हैं। प्रमुख भूमिका में कौशल उपाध्याय हैं। इसके अलावा बबीता श्रीवास्तव, चांदनी पारख और हेमलाल उपाध्याय ने भूमिकाएं निभाई है।
Interview with Santosh Jain ji
छॉलीवुड के फिल्मों की सफलता पर आपकी क्या राय है? क्या छॉलीवुड की फिल्में आने वाले समय और तेजी से सफलताएं अर्जित करेगी?
देखिए आपको बता दें कि अभी हाल ही में हमने एक बड़ा आंदोलन किया था, मल्तीप्लेक्स में छत्तीसगढ़ फिल्मों को लेकर। इसका नतीजा ये हुआ कि राज्य सरकार इस पर फैसला देते हुए छत्तीसगढ़ फिल्मों को मॉल में दिखाने का रास्ता साफ हुआ। और अभी हाल ही रिलीज फिल्म हंस झन पहली नहीं तो फंस जाबे मॉल्स में भी दिखाए जा रहे हैं। इसके साथ ही कई सिंगल स्क्रीन पर भी ये फिल्में चल रही हैं। आने वाले समय में जब कारोबार बढ़ेगा तो और फिल्में आएंगी। इसके साथ ही मॉल्स में जब छत्तीसगढ़ फिल्म लगने लगी तो हमारी जवाबदारी भी बढ़ गई है।
हंस झन पगली फंस जबे की सफलता पर आप क्या कहना चाहेंगे…? फिल्म की सफलता किस बात का निर्भर करती है, विज्ञापन, कहानी पर या किरदारों पर?
ये आपका बहुत अच्छा सवाल है। जैसे ही ये फिल्म आई है, लोगों की भीड़ उमडऩे लगी है। इसके पीछे दो कारण है, विज्ञापन तो इन्होंने भी किया जैसा और फिल्मों का होता है। लेकिन सतीश जैन की बात करें तो वे फिल्मों में कुछ ऐस दृश्यों का निर्माण करते हैं, ऐसी कहानी पेश करते हैं, जो लोगों को, खासकर गांव के लोगों को आकर्षित करती है। इसके साथ वे फिल्मांकन और कहानी पर बहुत ध्यान देते हैं। और काफी सोच-समझकर फिल्मों का निर्माण करते हैं।
लेकिन एक बात तो तय है कि फिल्म की कहानी अच्छी होगी, संवाद अच्छा होगा, गाने अच्छे होंगे तो फिल्में चलेंगी। और सबसे बड़ी बात है कि छत्तीसगढ़ में नया राज आने के साथ-साथ लोगों में छत्तीसगढ़ी को लेकर एक नया उत्साह जगा है। ऐसा ही उत्साह मोर छईया भुईयां के समय जगा था, जब नया छत्तीसगढ़ राज्य बना था। वैसा ही उत्साह अभी नई सरकार, भूपेश बघेल की सरकार आने के साथ ही जगा है। नई सरकार के साथ ही लोगों में अपनी बोली भाषा को लेकर एक नया उत्साह जगा है। सतीश जैन तो एक कारण हैं ही। इसके अलावा नई सरकार के आने के साथ ही छत्तीसगढ़ी को लेकर लोगों में नए उत्साह का संचार हुआ है।
इन सबको देखते हुए ऐसा लग रहा है कि भूपेश बघेल की गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना साकार हो रही है। और जब मॉल्स में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का प्रदर्शन शुरू हो गया है तो हमारी जवाबदारी भी अब काफी बढ़ गई है। मैं भी निर्माताओं से कहना चाहूंगा कि वो जल्दबाजी ना करें और ऐसी फिल्में बनाएं।
और अंत में… आप कैसी-कैसी फिल्में बनाना चाहेंगे, जिसे दर्शक पसंद करेंगे?
देखिए, छत्तीसगढ़ में हमारे पास कहानी की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ में कहानियों को विशाल भंडार है। अभी तक हम लोग इसलिए हिचक रहे थे कि मार्केट बहुत छोटा था। इसलिए कम बज की फिल्में बनती थी अभी आप देखिए कबीर सिंह ने एक दिन में 145 करोड़ का करोबार किया है। उनको 3 हजार से ऊपर थियेटर मिले हैं। हमारी मजबूरी ये है कि हमारे पास 15-20 ताकीज है, इससे हमें पैसा निकालना है, हम डरते हैं। इसलिए ऐसे कहानियां ढूंढते हैं, जो लोगों को आकर्षित करें। और मैं सरकार से ये कहना चाहूंगा कि गांव में ब्लॉक स्तर में, तहसील स्तर में, पंचायत स्तर में एकल खिड़की के तहत लाइसेंस देना चाहिए। साथ ही वहां पर थियेटर खुले, लोगों को रोजगार मिले और छत्तीसगढ़ की संस्कृति का विकास हो।