MAHASHIVRATRI

CGFilm.in महादेव के भोग-श्रृगांर भारतवर्ष का महापर्व है महाशिवरात्रि। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले इस पर्व में देवाधिदेव,महामृत्युंजय, भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना धूमधाम से की जाती है।पौराणिक कथाओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान शिव का विवाह पार्वती जी के साथ हुआ था।भोले भाले और उदारमना भोलेनाथ को गरीबों के देव भी कहते हैं।दरअसल महंगे मेवा मिष्ठान से दूर धतूरा,बेल,भांग,शमी,कनेर, चिड़चिड़ा जैसे जंगली पौधों के फल-फूल के भोग-श्रृंगार- अर्पण से वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें “वनस्पतियों का देव”भी कहा जाता है।

धतूरा संकट हरे पूरा– धतूरा के चढ़ावे से भक्तों की बड़ी बड़ी मन्नतें भोलेनाथ पूरी कर देते हैं।संकट हर लेते हैं।समूचे भारतवर्ष में बड़ी आसानी से खेत खलिहान बियाबान में उगने वाले धतूरे को विषैले पौधों की श्रेणी में रखा गया है।शिवप्रिय धतूरा के विविध किस्मों में ‘ट्रम्पेट बिगुल (तूरही मोहरी )” जैसे सफ़ेद , बैगनी,पीले, गुलाबी फूल खिलते हैं। इसमें गोल कांटेदार फल आते हैं इसीलिए इसे ‘थोर्न एप्पल ‘ (कांटेदार सेब) भी कहते हैं।धर्म ग्रंथों मेंधतूरे का खास वर्णन मिलता है।आचार्य चरक इसे “कनक” तथा सुश्रुत इसे ‘उन्मत्त’ नाम से पुकारते हैं। संस्कृत में इसे “धृत मातूल” कहते हैं। आयुर्वेदाचार्य इससे अनेक रोगों को दूर करने की औषधि निर्मित करते हैं।

भोले को भाए बेल बृक्ष – भोलेनाथ का दूसरा अति प्रिय पौधा बेल है। इसे श्रीबृक्ष,शिवद्रूम और ‘शाण्डिलु’अर्थात पीड़ा निवारक कहा जाता है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि मां पार्वती नेअपने ललाट पर आए पसीने को पोंछ कर फेंका तो वह मंदार पर्वत पर गिरा।उससे ही बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। ऐसी कथा प्रचलित है कि माता पार्वती ने शिवजी को प्राप्त करने के लिए अनेक वर्षों तक बेल पत्र खाकर जंगल में तपस्या की थी।कंटीले वृक्ष बेल में सामान्यत तीन पत्तियां संयुक्त रूप से जुड़ी होती है। जिनसे शिव का श्रृंगार किया जाता है,जो कि भगवान शिव के त्रिनेत्र स्वरूप होते हैं। पत्तियों में माता गौरी का वास होता है।बेल पत्र को कभी बासी नहीं माना जाता।एक बार भोलेनाथ पर चढ़े बेलपत्र को दोबारा भी धोकर चढ़ाया जा सकता है।इसमें हल्के हरे सफेद फूल आते हैंऔर ग्रीष्म ऋतु में चिकने गेंद की तरह हरे हरे फल आते हैं।पकने पर ए आम की तरह पीले हो जाते हैं।जिसके गूदे से निर्मित शरबत के सेवन सेअनेक ब्याधियों का नाश होता है।यह वृक्ष वायुमंडल में व्याप्त विषैली गैस,अशुद्धियों को सोखने की क्षमता रखता है।


शिव साधक है शमी – शिव जी की पूजा में शमी बृक्ष को भी विशेष दर्जा प्राप्त है। हिन्दू धर्म में पवित्र पौधा तुलसी की तरह शमी को भी घर में लगाना शुभ माना जाता है।भोलेनाथ को जल अर्पण करते समय शमी के फूल पत्ती डालने से वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं।थार के मरुस्थल में बड़ी मात्रा में पाए जाने वाले शमी को ‘खेजड़ी’ कहते हैं।श्रीराम ने लंकापति रावण से युद्ध करने के पूर्व शमी पत्रों से ही शिव पूजा की थी।विजया दशमी के दिन शमी का पौधा घर पर लगाने की भी प्रथा है।औषधीय पौधा शमी में खूबसूरत गुलाबी,पीले,सफेद मिश्रित बाटलब्रश की भांति फूल खिलते हैं।ऐसी मान्यता है कि एक शमी का फूल पत्र लाखों बेलपत्र, कनेर, धतूरा,आक के समतुल्य होता है।कंटीले भूरे रंग की छाल युक्त शमी के फूलों को ‘मींझर’ फलों को ‘सांगरी’ और सूखे फल को ‘खोखा’ कहा जाता है।


मदार में मगन महादेव – महादेव को मदार का पौधा भी मुग्ध कर देता है। इसे आक,अक्वा,अर्क भी कहते हैं।बरगद के जैसे पत्तों वाले मदार की डगाली,पत्ती फल,फूल को तोड़ने पर दूध निकलता है।इसके सफेद, बैगनी,रंग के फूलों से पूजा करने पर महादेव मनवांछित फल दे जाते हैं।भोलेनाथ की नगरी काशी (बनारस) में मदार के पौधों की खेती बड़ी मात्रा में की जाती है।मदार की जड़, दूध, फूल, पत्ती भी औषधि के रूप में इस्तेमाल होते हैं। इसके आम जैसे फल केअंदर रुई से लिपटे बीज होते हैं।पकने पर फल स्वत:फट जाते हैंऔर इसमें से पैराशूट की तरह निकलकर बीज हवा में दूर-दूर तक उड़ते चले जाते हैं।प्रकृति की यह अद्भुत जादूगरी ‘विकिरण प्रक्रिया’ कहलाती है।

भांग का भोग चढ़े भोले को – भोलेनाथ को भांग का भोग चढ़ाया जाता है,जो कि नशीले प्रजाति के पौधे भांग की पत्तियों को पीसकर बनाया जाता है।भांग के पौधे नर -मादाऔर उभयलिंगी होते हैं।नर प्रजाति के पौधे की पत्तियों से भांग और मादा प्रजाति के पौधे के फूल से गांजा बनता है।इसकी शाखाओं-पत्तों पर राल (गोंद) के समान चिपचिपा पदार्थ निकलता है।जिसे चरस कहा जाता है।भांग की खेती उत्तराखंड बिहार, पश्चिम बंगाल,उत्तर प्रदेश में प्रचुरता से होती है। गढ़वाल के चांदपुर को भांग का गढ़ कहा जाता है।भोले प्रिय क्यों हैं भांग- धतूराभगवान भोलेनाथ का निवास कैलाश पर्वत है। यह पूरी तरह से बर्फ़ से आच्छादित है। प्रचण्ड ठंड के वातावरण में गर्म तासीर धतूरा के सेवन से शरीर में गरमी आती है। ऐसा भी कहा जाता है कि समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से उत्पन्न विष का सेवन भोलेनाथ ने किया। हलाहल विष के सेवन से उनका शरीर तपते हुए नीला पड़ने लगा।उन्हें बेचैनी होने लगी।तबऔषधि के रूप में उन्हें भांग, धतूरा, बेल पत्र का सेवन कराया गया।
गंजेड़ी भंगेड़ी नहीं है भोलेनाथ
भगवान शिव के प्रसाद के नाम पर भरपूर भांग गांजा का सेवन करने वाले जान लें कि भोलेनाथ ने ऐसे विषैले नशीली चीज़ों का सेवन औषधि स्वरूप ग्रहण किया था।यह सर्वविदित है कि औषधि की मात्रा सदैवअल्प ही होती है।आज के समय में अनेक दूराचारी,नशेड़ी लोग बम बम भोले, हर हर महादेव,की रट लगाते हुए नशीले पदार्थों का सेवन अत्यधिक मात्रा में करते हैं। भोले भक्त बनने का उपक्रम करते हैं।यह सर्वथा अनुचित है।महाशिवरात्रि पर ऐसे नशेड़ियों सहित आमजन भी संस्कृत के इस लघु सूत्र का मनन करें-अति सर्वत्र वर्जयेत।